गुरुवार, 19 सितंबर 2013

गंगाराम की समस्या

अपनी 70 वर्षीय माँ को बीमार अवस्था में देखकर गंगाराम समझ नहीं पा रहा था  कि माँ का स्वाथ्य अब कैसे सुधरेगा, क्यों कि वैधजी ने उनके सारे परीक्षण करके देख लिए उनको कोई बीमारी नही निकली। पत्नी कल्याणी  उसपर प्रत्यक्ष तौर पर तो आक्रोश  व्यक्त नहीं कर रही पर अपनी गुस्सैल तिरछी नज़र डालने से भी बाज़  नहीं आ रही थी, आखिर माँ जब चलती फिरतीं रहतीं थीं तो घर बाहर के कई काम निपटा लेतीं थीं और वो जब स्कूल से पढ़ा कर लौटती, तो देखती कि दादी बच्चों को प्यार से खाना खिला रही होती थीं। गंगाराम पोस्टमॉस्टर था तो समय की पावंदी से पोस्ट ऑफिस जाना भी पड़ता था इसलिये कुछ काम माँ की ज़ुम्मेदारी  पर छोड़ने पड़े थे.गंगाराम और कल्याणी दोनों ही माँ को  बहुत सम्मान देते थे , और बच्चे भी दादी से बहुत प्यार करते थे । कुल मिलाकर  खुशहाली में दिन निकल रहे थे।
  माँ ने पिताजी की मृत्यु के बाद गाँव में रह कर,कपड़े सिल कर उसकी पढाई का खर्चा उठाया था।गंगाराम माँ की उस तपस्या का गवाह था। वैसे तो हर व्यक्ति ही अपनी माँ का ऋणी होता है, पर कई पत्नी की बात मानने लगते हैं, और इसका मतलब ये भी नहीं कि वो अपनी माँ के ऋणी नहीं रहते। गंगाराम अपनी माँ की कोई बात नहीं टालता था, माँ अपनी हमउम्र महिलाओं के साथ कभी सत्संग तो कभी आस पास के तीर्थ स्थलों पर जाने की बात करतीं तो गंगाराम फ़ौरन ही स्वीकृति दे देता था, पर कल्याणी माँ के सत्संग मे जाने के सदा खिलाफ़ रहती थी, एक तो वो स्वयं सिर्फ भगवान को ही मानती थी दूसरे माँ सत्संग की तमाम हिदायतें रात मे बच्चों को सुना कर उनको ओवर लोड करतीं रहतीं थीं। उसको डर था कि बच्चे भी बड़े होकर सत्संगी  ना बन जाएँ।    यूँ तो घर का माहौल काफ़ी शान्त और संस्कारयुक्त था पर सत्संग की बात पर पतिपत्नी में अक्सर ठन जाती थी।पर माँ को कुछ पता नहीं पड़ता था। वो सत्संग से लौटकर काफ़ी खुश दिखाई देतीं थी। फिर दिनचर्या सामान्य गति से चलने लगती थी। 
पर कुछ दिन पहले जब से माँ ने टीवी पर समाचार में गुरूजी को गिरफ्तार होते देखा है,अपने गुरूजी के असली  रूप को देखकर सदमे में आ गयी हैं। इधर बच्चे भी कभी समाचार देखते तो कभी दादी की हालत देखकर समझ नहीं पा रहे थे  कि माज़रा क्या है क्यूँ कि उनकी उम्र ना तो इतनी बड़ी है कि सब समझ लें और ना ही इतनी छोटी कि उस तरफ ध्यान ही ना दें। उधर  कल्याणी की भी चढ़ बनी है।लगता है जैसे उसपर कलफ़ चढ़ गया हो।
अब गंगाराम की समस्या यह है कि माँ की इस जर्जर अवस्था को  पहले सा गतिमान कैसे  बनाये और उनके अटूट विश्वास के टुकड़ों को कैसे जोड़े।